इंटरनेट सेवा हमारा मौलिक अधिकार – खोवाल

February 10, 2021

इंटरनेट सेवा हमारा मौलिक अधिकार – खोवाल

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर, इंटरनेट सेवा को मौलिक अधिकार की श्रेणी में शामिल करने की मांग

हिसार, 10 फरवरी रवि पथ :

सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे समाज सेवक अधिवक्ता लाल बहादुर खोवाल ने इंटरनेट सेवा बंद करने बाबत पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए हरियाणा सरकार की दिनांक 29 व 30 जनवरी को जारी नोटिफिकेशन को चैलेंज किया है। एडवोकेट खोवाल ने इंटरनेट सेवा को मौलिक अधिकार के दायरे में लाने का हाई कोर्ट से आग्रह करते हुए जनहित याचिका के माध्यम से हरियाणा सरकार द्वारा डोंगल सर्विस बंद करने की वजह से डिजिटल व्यवसाय एवं वाणिज्य को नुकसान होना बताया है। एडवोकेट खोवाल ने कहा कि शिक्षा, बिजनेस, गवर्नमेंट सर्विस आज पूरी तरह से इंटरनेट पर आधारित होते हैं। इसके अलावा अभी तक स्कूल कॉलेज भी पूरी तरह से नहीं खोले गए हैं। बच्चों की पढ़ाई भी ऑनलाइन करवाई जा रही है। सरकार का उद्देश्य डिजिटल इंडिया को बेहतर करना है जबकि बच्चों को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि अदालतों में भी वीडियो कांफे्रंस के द्वारा सुनवाई की जा रही है, लेकिन सरकार द्वारा इंटरनेट का दरवाजा बंद करने की वजह से सामान्य आदमी के लिए कोर्ट जाना दुभर हो गया है। वहीं दूसरी तरफ इंटरनेट की स्पीड भी कम है और इस बारे में सरकार ने कोई जानकारी भी नहीं दी है। जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर फेक न्यूज चलाई जाती है, जिस पर सरकार ने कोई रोक नहीं लगाई है।


बॉक्स- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इंटरनेट को माना था आवश्यक वस्तु
एडवोकेट खोवाल ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 24 मार्च 2020 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें इंटरनेट सेवा को आवश्यक वस्तु में माना गया था, लेकिन हरियाणा सरकार ने पत्र जारी करते समय इस बारे ध्यान नहीं दिया तथा टेलीग्राफ एक्ट के सेक्शन 7 में जो रूल है उसके मुताबिक गृह सचिव को साइन करके तथा एप्लीकेशन ऑफ माइंड अप्लाई करके आदेश जारी करने होते हैं, जबकि हरियाणा सरकार ने जो पत्र जारी किया है वह गृह सचिव की बजाए एडिशनल चीफ सेक्टरी के द्वारा जारी किया गया है। इसके इलावा यह पत्र लॉ एंड ऑर्डर के आधार पर जारी किया गया है, जबकि ऐसे आदेश पब्लिक ऑर्डर के आधार पर ही जारी किए जा सकते हैं। क्योंकि संविधान के आर्टिकल 19 में ऐसे आदेश केवल पब्लिक ऑर्डर पर ही जारी किए जा सकते हैं। अधिवक्ता लाल बहादुर खोवाल ने जनहित याचिका के माध्यम से अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के 10 जनवरी 2020 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए मांग की है कि इंटरनेट सेवा को संविधानिक सुरक्षा के दायरे में लेते हुए मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया जाए। इस जनहित याचिका में मुकेश राव, मनदीप सेहरा व आईना वर्मा अधिवक्तागण पेश हुए।