आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान की मूल भावना से खिलवाड़-एडवोकेट खोवाल

November 9, 2022

आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान की मूल भावना से खिलवाड़-एडवोकेट खोवाल

सामान्य वर्ग के लोगों को होगा ज्यादा नुकसान, मात्र 3.5 प्रतिशत आबादी के हित में है फैसला

हिसार, 09 नवंबर रवि पथ :

ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लास फैडरेशन ने हाल ही में पांच जजों की संवैधानिक बैंच द्वारा सामान्य जाति के गरीब लोगों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने संबंधी फैसले को सामान्य वर्ग के हितों के साथ कुठाराघात करार दिया है। फैडरेशन के राष्ट्रीय कानूनी सलाहकार एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल ने कहा कि हाईकोर्ट के निर्देश पर मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र सरकार द्वारा कराए गए सर्वे में सामान्य वर्ग में गरीब लोगों की संख्या मात्र साढ़े तीन प्रतिशत है, जिन्हें दस प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। जिससे इस वर्ग के अन्य लोगों को आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिल पाएगा।
संविधान में नहीं आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान
एडवोकेट खोवाल ने कहा कि वास्तव में संविधान में इस तरह के आरक्षण का कोई प्रावधान हीं नहीं है। संविधान में आरक्षण का आधार केवल सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ापन था ताकि सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को मुख्य धारा में लाया जा सके। उन्होंने कहा कि गरीब लोगों के उत्थान के लिए सरकार कोई भी अन्य योजना चला सकती है और समय समय पर सरकारों ने मनरेगा जैसी गरीबी उन्मूलन योजनाएं चलाकर गरीबों के उत्थान का प्रयास भी किया है। ऐसे में उनके लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि सरकारें गरीबों के उत्थान के प्रावधान तो लागू नहीं करती और संविधान के खिलाफ जाकर आरक्षण को खत्म करने की साजिश रची जा रही है।
लार्जर बैंच के फैसले को कैसे पलट सकती है लोअर बैंच
एडवोकेट खोवाल ने कहा कि आरक्षण को लेकर इंद्रा साहनी के नौं जजों की संवैधानिक बैंच के फैसले को आधार मानकर ही सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट अपने फैसले देती रही है। इस बैंच ने स्पष्ट कर दिया था कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं दिया जा सकता। इसके उपरांत सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के सैंकड़ो फैसले आ चुके है। जिनमें इंद्रा साहनी के नौ जजों के फैसलों को मानते हुए सारी पीटिशन खारिज कर दी गई। हरियाणा में भी अब हाल ही में पंचायतों में पिछड़ा वर्ग को आठ प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में उस फैसले को ही आधार माना गया था। अब ऐसा पहली बार हुआ है कि नौ जजों के संवैधानिक फैसले को पांच जजों की बैंच, जिसमें दो जज फैसले पर सहमत नहीं थे, फिर भी उस फैसले के विपरीत आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि नौ जजों के फैसले का पांच जज कैसे पलट सकते हैं, जबकि होना तो यह चाहिए था कि लार्जर बैंच, जिसमें नौ से ज्यादा जज होते, वे अपना फैसला सुनाते।
आबादी के आधार पर आरक्षण देने का उठाया जाएगा मामला
एडवोकेट खोवाल ने कहा कि मंडल कमीशन रिपोर्ट के आधार पर पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया गया था, उस समय ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत मानी गई थी, जिसके बाद कई अन्य सैंकड़ों जातियां इस वर्ग में शामिल की जा चुकी है। इस हिसाब से ओबीसी वर्ग को आबादी के हिसाब से मात्र 27 प्रतिशत आरक्षण देना भी संविधान के खिलाफ है। जबकि ताजा फैसले में आर्थिक आधार पर मात्र 3.5 प्रतिशत आबादी को दस प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।अनुच्छेद 103 का संशोधन तथ्यों एवम आंकड़ों के बिना जल्दबाजी में लाया गया साबित हो रहा है। जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगाई है। जबकि यह नैतिक एवम तथ्यात्मक रूप से संविधान की मूल भावना के विपरीत है। इसलिए यदि किसी प्रकार का संशय है तो सरकार नए सिरे से जातीय जनगणना के आंकड़े सामने लाए ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके और मूल संविधान की भावना के अनुसार सभी वर्गों को समान रूप से उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।इसलिए अब फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जस्टिस वी ऐश्वर्या व फैडरेशन की तरफ से हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पीटिशन लगाई जाएगी, इसके इलावा अब 50% की लिमिट खत्म कर दी गई है इसलिए पिछड़े वर्गों के लिए 52% या आबादी के हिसाब से आरक्षण दिए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में व हाई कोर्ट में याचिका भी लगाई जाएगी। उन्होंने कहा कि अब से पहले सुप्रीम व हाईकोर्ट कहती रही है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं दिया जा सकता, लेकिन ताजा फैसले के बाद आरक्षण की यह कैप हट चुकी है। अब सरकार से भी मांग की जाएगी कि जब आरक्षण की सीमा खत्म ही कर दी गई है तो आबादी के आधार पर आरक्षण दिया जाए।