मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने व पैदावार में बढ़ोतरी के लिए दिया केेंचूआ खाद बनाने का प्रशिक्षण

August 21, 2021

मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने व पैदावार में बढ़ोतरी के लिए दिया केेंचूआ खाद बनाने का प्रशिक्षण

केंचूआ खाद उत्पादन तकनीक विषय पर ऑनलाइन प्रशिक्षण का समापन

हिसार 21 अगस्त  रवि पथ :

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान में केंचूआ खाद उत्पादन तकनीक विषय पर तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस दौरान किसानों को अपने खेत की मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने व फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए केंचूआ खाद तैयार करने की तकनीकों के बारे में बताया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज के दिशा-निर्देश एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. रामनिवास ढांडा के मार्गदर्शन में संस्थान में लगातार किसानों के लिए ज्यादा से ज्यादा इस तरह के प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं। संस्थान के सह निदेशक (प्रशिक्षण) डॉ. अशोक कुमार गोदारा ने बताया की किसान वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन को व्यवसाय के रूप में अपनाकर अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं। इसे अलावा वर्मी कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाने से उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और फसलों में पैदावार व गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। प्रशिक्षण के संयोजक डॉ. संदीप भाकर ने बताया कि केंचूआ खाद को तैयार करने की जानकारी प्रत्येक किसान को होनी चाहिए। इस खाद में सामान्य गोबर की खाद की तुलना में अधिक मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सूक्ष्म तत्व पाए जाते हैं। यह खाद भूमि की ऊपजाऊ क्षमता में टिकाऊपन लाती है और फसलों की गुणवत्ता में सुधार करती है। डॉ. रविकांत ने केंचूए की विभिन्न प्रजातियों व उनके जीवन चक्र के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। साथ ही केंचूआ खाद तैयार करने में केंचूओं की भूमिका के बारे में भी बताया। डॉ. रामधन जाट ने केंचूआ खाद तैयार करने में प्रयोग होने वाले कार्बनिक पदार्थों तथा केंचूआ खाद की यूनिट संरचना की जानकारी दी। डॉ. रामस्वरूप दादरवाल ने यह खाद तैयार करने की विभिन्न विधियों, केंचूआ खाद की छनाई, खाद से केंचूओं को अलग करने एवं वर्मी बार तैयार करने की विधि की विस्तृत जानकारी दी। इस प्रशिक्षण में सहायक मृदा वैज्ञानिक डॉ. पूजा ने केंचूआ खाद बनाने के दौरान ध्यान में रखी जाने वाली बातों को बताया जिसमें उचित तापमान एवं नमी बनाए रखना, ताजे गोबर का प्रयोग ना करना व वायु संचार के लिए बैड में खाद की पलटाई के बारे में बताया। डॉ. निर्मल कुमार ने केंचूआ खाद उत्पादन को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने में होने वाले खर्चों तथा उससे प्राप्त होने वाली आय की जानकारी दी। इस प्रशिक्षण में प्रदेशभर के 30 किसानों ने हिस्सा लिया।