सुरजेवाला ने एक बार फिर से पोस्टकार्ड के माध्यम से साधा मोदी सरकार पर निशाना

August 15, 2021

सुरजेवाला ने एक बार फिर से पोस्टकार्ड के माध्यम से साधा मोदी सरकार पर निशाना

पूरे 8 मिनट का वीडियो जारी कर मोदी सरकार की तानाशाहीनता को किया उजागर

कैथल, 15 अगस्त 2021  रवि पथ :

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने आज फिर से “पोस्टकार्ड” के माध्यम से वीडियो रिलीज कर मोदी सरकार पर निशाना साधा।

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला समय समय पर पोस्टकार्ड रिलीज करते आए हैं और वीडियो के माध्यम से मोदी सरकार द्वारा देश में पैदा किए जा रही तानाशाही को बयां किए हैं। इसी कड़ी में आज सुरजेवाला ने पोस्टकार्ड के माध्यम से 15 अगस्त पर वीडियो जारी किया।

ये हैं उस वीडियो के प्रमुख अंश :-

दोस्तों, आजादी की इस वर्षगांठ पर सबसे पहले भारत भूमि के उन तमाम वीर हुतात्माओं, पवित्र-पावन आत्माओं को शत शत नमन जिनकी बदौलत आज हम आजाद हैं। देश के सपूतों की बदौलत मिली इस आजादी की आप सबको बहुत बहुत बधाई।

15 तारीख के इस खास मौके पर मैं आप सबको तारीख के उस ऐतिहासिक लम्हे से रू-ब-रू कराना चाहता हूं जिसकी बदौलत आज हम इस मुकाम पर खड़े हैं। 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि की वेला थी वो। स्वतंत्रता की सुईयां मजबूत कदमों से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही थी। दूसरी तरफ आधुनिक भारत के शिल्पकार, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सबसे बड़े पैरोकार पंडित नेहरू नियति से साक्षात्कार कर रहे थे। Tryst with destiny । गौर फरमाइए उस साक्षात्कार के सार तत्व पर।

बहुत साल पहले हमने नियति से एक वादा किया था और अब उस वादे को पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक पूरा करने का वक्‍त आ गया है। आज जैसे ही घड़ी की सुईयां मध्‍यरात्रि की घोषणा करेंगी, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और आजादी की करवट के साथ उठेगा।

नियति के साथ हिंदुस्तान ने जो वादा किया था, उसे पूरा किया। देश आजाद हुआ, गुलामी की बेड़ियां टूट टूटकर बिखर गईं, देश के नौनिहाल खुली फिजां में परवाज भरने लगे लेकिन देश के शहीद सपूतों ने आजादी के जो सतरंगी स्वपन देखे थे, स्वतंत्र भारत की जिस सूरत और सीरत का खाका खींचा था, उसका क्या हुआ? क्या आजादी के मायने यही है जिससे आज हम रोज रू-ब-रू हो रहे हैं।

बोलने पर पाबंदी, लिखने पर पाबंदी, प्रदर्शन पर पाबंदी, पत्र-पत्रिकाओं पर पाबंदी, टीवी-अखबार पर पाबंदी, सोशल मीडिया पर पाबंदी, सामाजिक संस्थाओं पर पाबंदी, आपसी भाईचारा निभाने पर पाबंदी ! हर उस चीज पर पाबंदी जिससे इस तानाशाही सरकार के जोर जुल्म पर किसी तरह का खलल पड़ता हो। हाथ में हथकड़ी लेकर सरकार स्वतंत्रता की बात कर रही है, पर काटकर पक्षी को पिंजरे से आजाद कर रही है!

वो जो क़ातिल था वही मेहदी मसीहा बन गया,
ऐसी दोहरी शख़्सियत का आदमी देखा नहीं।

इस दोहरी शख्सियत वाले आदमी के राज में आजादी का अंदाज देखिए! जो बेकसूर हैं, वो सलाखों के पीछे हैं! जो कसूरवार है, वो सड़क से लेकर संसद तक सिद्धांत की बात कर रहा है! जोर जुल्म में सबसे ज्यादा जो शरीक है, इंसाफ की आवाज सबसे ज्यादा उसी की बुलंद है! जिसके किरदार पर शैतान भी शर्मिंदा हो जाएं, वो सबको नैतिकता की नसीहत दे रहा है और इन सबका मुखिया?

उसे यह फिक्र है हरदम, नया तर्जे जफा क्या है!
हमें यह शौक है देखें, सितम की इंतिहा क्या है?

सितम की इंतिहा अभी आना बाकी है दोस्तों लेकिन उसका ट्रेलर हम पिछले सात सालों से देख रहे हैं। पिछले सात सालों में आजादी की नई परिभाषा गढ़ दी है इस तानाशाही सरकार ने। आजादी के मायने और मतलब अब वो नहीं रह गए हैं जो साल 2014 से पहले थे!

राफेल डील पर दलाली खाकर चुप रहने की आजादी हासिल कर ली है इस सरकार ने! अपने उद्योगपति दोस्तों को देश बेचने की आजादी हासिल है इस सरकार को! ऑक्सीजन आपूर्ति में धांधली मचाकर लोगों की सांस पर पहरा लगाने की आजादी है इस सरकार को।नदी नालों में बहती लाशों और धधकती चिताओं पर सियासी रोटियां सेंकने के लिए आजाद है ये सरकार।

सरकार और उसके नुमाइंदों की ऐसी आजादी से हम हर रोज रू-ब-रू हो रहे हैं। हम सर्वोच्च न्यायालय के उस पूर्व मुख्य न्यायाधीश की आजादी देख रहे हैं जो खुद पर लगे यौन शोषण के आरोप की खुद जांच करता है और खुद को क्लीन चिट देता है। हम देख रहे हैं देश के सबसे बड़े सूबे के मुखिया की उस आजादी को जो खुद को सारे अपराधों से बरी करने के लिए स्वतंत्र है। इस सरकार राज में सीएम आदित्यनाथ योगी आदित्यनाथ को क्लीन देने के लिए आजाद हैं। आजाद आप भी हैं, आपकी तरह तमाम आवाम भी है लेकिन हम सबको कैसी आजादी? बस ऐसे बेशर्म वाकयों को चुपचाप देखने की आजादी।

कुर्बेतें होते हुए भी फासलों में कैद है,
कितनी आजादी से हम, अपनी हदों में कैद हैं।

आजादी की इस वर्षगांठ पर अपने देश-समाज की यही हकीकत है दोस्तों लेकिन क्या इसके लिए कसूरवार केवल सरकार और उसके नुमाइंदे हैं? इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले आपसे एक सवाल-दुनिया का सबसे बड़ा अपराध क्या है ? सबसे बड़ा जुर्म क्या है ? कत्ल, डाका, लूट, ठगी। नहीं। ये सब बाई प्रोडक्ट हैं । मूल अपराध से निकली शाखाएं।

मेरी नजर में दुनिया का सबसे बड़ा अपराध है-अन्याय के खिलाफ खामोश रहना। गलत को गलत कहने की ताकत नहीं जुटा पाना। ये है दुनिया का सबसे बड़ा अपराध। इसी अपराध की वजह से बाकी सारे अपराध शुरू होते हैं ।
और इस अपराध का सबसे दिलचस्प पहलू पता है क्या है ? इसकी कोई कानूनी सजा नहीं होती है ! कोई भी कोर्ट, कोई भी अदालत आपको इस बात के लिए सजा नहीं सुना सकती कि आप उस वक्त क्यों खामोश रहे जब एक निरकुंश तानाशाह, एक शातिर सियासतजीवी लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहा था ? इस बात के लिए कोई हाईकोर्ट, कोई सुप्रीम कोर्ट आपको सजा नहीं सुना सकता है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इसकी सजा नहीं मिलती है । मिलती है, खूब मिलती है और ऐसी मिलती है कि आनेवाली पीढ़ी तक उस सजा को सिसक सिसककर भुगतने के लिए विवश होती है । लम्हों की खता को सदियां भुगतती हैं ।

दोस्तों, आजादी की इस वर्षगांठ पर मेरा आपसे बस एक आग्रह है-स्वतंत्रता के सच के लिए संघर्ष कीजिए,असली आजादी के लिए उद्घोष कीजिए। ये मत सोचिए कि कौन आपके साथ है, कौन अपनी हदों में कैद है, बस आप असली आजादी के लिए अपनी आवाज बुलंद कीजिए। बोलिए इस तानाशाह को…
नेजे पर रखकर सिर मेरा और बुलंद कर
दुनिया को एक जलता चिराग तो दिखाई दे
नमस्कार । आप सबको आजादी की बहुत बहुत बधाई ।