मुन्शी प्रेमचंद सिर्फ भारतीय साहित्य के मानक ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति के भी मानक : मोहित बंसल

September 18, 2020

मुन्शी प्रेमचंद सिर्फ भारतीय साहित्य के मानक ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति के भी मानक : मोहित बंसल

नरवाना, 18 सितंब रवि पथ :

सत्यमेव जयते फाऊंडेशन द्वारा मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित साहित्य प्रतियोगिता का प्रचार प्रसार नरवाना युवा शाखा द्वारा पूरे जोर शोर से चल रहा है। सत्यमेव जयते फाऊंडेशन द्वारा मुन्शी प्रेमचंद की कहानियों में से मुख्य रूप से जन साधारण पर आधारित बीस अलग अलग किताब छपवाकर पूरे नरवाना शहर में बच्चों तक पहुंचायी जा रही हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे इस महान लेखक द्वारा लिखित कहानियों से प्रेरणा ले सके। आज संस्था के प्रतिनिधि अग्रवाल वैश्य समाज के प्रदेश संगठन मंत्री मोहित बंसल से मिले एवम् कार्यक्रम की चर्चा की। मोहित बंसल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत के सांस्कृतिक परिवेश को समझना है तो मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं से गुजरे बिना संभव नहीं है। प्रेमचंद सिर्फ भारतीय साहित्य के मानक ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति के भी मानक हैं। उनकी रचनाओं में भारत की उर्वर मिट्टी दिखती है। उन्होंने ने कहा कि मुन्शी प्रेमचंद अपने तैंतीस वर्षो के रचनात्मक जीवन में साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य व आकार की दृष्टि से असीमित है। बंसल ने युवा पीढ़ी के इस नए प्रयोग पर हर्ष जताते हुए कहा कि आधुनिक भारत के नौजवान यदि प्रेमचंद की कहानियों को आत्मसात कर उन्हें अपने जीवन में उतारने लगे, तो हमारा भारत फिर से एक दूसरे के दुख दर्द को समझने वाला संवेदनशील हो जाएगा। मोहित बंसल ने कहा कि प्रेमचंदकालीन समाज व वर्तमान समाज में बहुत गुणात्मक फर्क नहीं आया है। उनकी रचनाओं में पिछडापन, स्त्री, किसान, मजदूर, रूढ़ीवादी, पाखंड, सामाजिक विकृतियां, दहेज प्रथा, छुआछूत सम्प्रदायवाद चित्रित हैं। वह वर्तमान में और भी जटिल रूप में विद्यमान हैं। साहित्यिक चर्चा ही शायद इन सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का आखिरी रास्ता है। इस सामाजिक अभियान में सतीश गोयल, अंकित गोयल,आकाश सिंगला,विशाल गर्ग,भवेश सिंगला,सचिन गोयल ने भाग लिया।